White जितना अहंकार को त्याग कर आप प्रकृति के समीप | हिंदी विचार Video

"White जितना अहंकार को त्याग कर आप प्रकृति के समीप जाएंगे , वह उतना ही आपको सनेह करेगी यह एक दम सत्य और प्रमाणिक बात है,जो मैंने अपने जीवन में अनुभव की है। अब आप ये सोच रहे होंगे कि प्रकृति क्या है कैसी दिखती है,देखिए प्रकृति असल में दो शब्दों से मिलकर बनी है , प्र+कृति प्र अर्थात प्रभु या परमेश्वर और कृति मतलब कार्य या रचना जिसका निर्माण ईश्वर के द्वारा किया गया है वह ही प्रकृति है । ईश्वर ने दो ही मात्र महत्वपूर्ण कार्य किए एक तो प्रकृति और दूसरा मनुष्य । और दोनों को एक दूसरे के प्रति उद्देश्य और कार्य भी बताए । मनुष्य को प्रकृति दी विवेक दिया जिससे वह अपने विवेक द्वारा अपने कर्तव्यों का प्रकृति के प्रति निर्वहन कर सके उसकी सेवा कर सके उससे प्रेम कर सके । और प्रकृति को उसका कार्य दिया जिससे वह अपने अन्न,फल, जल आदि से मनुष्य का भरण पोषण कर सके । एक के अभाव में एक पूर्ण नहीं है । अब जब प्रकृति अपने पथ संचलन से नहीं हटी तो हम मनुष्य क्यों दूर होते जा रहे हैं उससे प्रेम , संरक्षण ,दुलार देने के स्थान पर उसे ही भक्षण किए जा रहे हैं यह कैसी चाहत और मानवता है ...? प्रश्न तो आज हर एक मानव से है । क्या जिस प्रकार हम अपने परिवारजनों को चाहते हैं उनकी फिक्र करते हैं। क्या थोड़ा सा भी एहसास इस बात का नहीं है की आने वाली पीढ़ियां क्या दिखेंगी। खैर छोड़ो बात और आगे बढ़ जाएगी ....!! प्रकृति क्या है...क्या मात्र पेड़ पौधे आदि प्रकृति का हिस्सा हैं ...? नहीं प्रकृति में हर जीव आता है चिटी से लेकर हाथी , नदी से लेकर झरने, तालाब से लेकर सागर , गाय , हाथी , बंदर ,भालू , जिसमें भी प्राण है वो प्रकृति है । आइए प्रकृति को बचाएं । एक पौधा हर दिन कहीं न कहीं जरूर लगाएं। ✍️✍️✍️ ©Abhilasha Sharma "

White जितना अहंकार को त्याग कर आप प्रकृति के समीप जाएंगे , वह उतना ही आपको सनेह करेगी यह एक दम सत्य और प्रमाणिक बात है,जो मैंने अपने जीवन में अनुभव की है। अब आप ये सोच रहे होंगे कि प्रकृति क्या है कैसी दिखती है,देखिए प्रकृति असल में दो शब्दों से मिलकर बनी है , प्र+कृति प्र अर्थात प्रभु या परमेश्वर और कृति मतलब कार्य या रचना जिसका निर्माण ईश्वर के द्वारा किया गया है वह ही प्रकृति है । ईश्वर ने दो ही मात्र महत्वपूर्ण कार्य किए एक तो प्रकृति और दूसरा मनुष्य । और दोनों को एक दूसरे के प्रति उद्देश्य और कार्य भी बताए । मनुष्य को प्रकृति दी विवेक दिया जिससे वह अपने विवेक द्वारा अपने कर्तव्यों का प्रकृति के प्रति निर्वहन कर सके उसकी सेवा कर सके उससे प्रेम कर सके । और प्रकृति को उसका कार्य दिया जिससे वह अपने अन्न,फल, जल आदि से मनुष्य का भरण पोषण कर सके । एक के अभाव में एक पूर्ण नहीं है । अब जब प्रकृति अपने पथ संचलन से नहीं हटी तो हम मनुष्य क्यों दूर होते जा रहे हैं उससे प्रेम , संरक्षण ,दुलार देने के स्थान पर उसे ही भक्षण किए जा रहे हैं यह कैसी चाहत और मानवता है ...? प्रश्न तो आज हर एक मानव से है । क्या जिस प्रकार हम अपने परिवारजनों को चाहते हैं उनकी फिक्र करते हैं। क्या थोड़ा सा भी एहसास इस बात का नहीं है की आने वाली पीढ़ियां क्या दिखेंगी। खैर छोड़ो बात और आगे बढ़ जाएगी ....!! प्रकृति क्या है...क्या मात्र पेड़ पौधे आदि प्रकृति का हिस्सा हैं ...? नहीं प्रकृति में हर जीव आता है चिटी से लेकर हाथी , नदी से लेकर झरने, तालाब से लेकर सागर , गाय , हाथी , बंदर ,भालू , जिसमें भी प्राण है वो प्रकृति है । आइए प्रकृति को बचाएं । एक पौधा हर दिन कहीं न कहीं जरूर लगाएं। ✍️✍️✍️ ©Abhilasha Sharma

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