"चंचल सी हो तुम , मन में हलचल सी कर जाती हों , कोमल सी हो तुम एक अनोखा सा एहसास दे जाती हो।
एक ख्वाब सी हो तुम जिसमें हकीकत सा दिखता है , हो कहीं आसपास ये कसमकश सा रहता है,
लफ़्ज़ों से जो बायां ना हो उस जज्बातों सा दिखता है, मन में कहीं हां मन में कहीं तेरा खयाल सा रेहता है l
©Dr. Ravi Sagar
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