दर्द दिल में था, जुबां भी थी खामोश,
बंद अलकों से निकलकर चुपके से, बेबस बना दिया ।
हम तो अकेले ही चाहते थे सुलगना,
अश्क तुमने बहकर, जहाँ को भी सुलगा दिया ।
माना सुलगना तासीर नहीं थी हमारी,
पर वक्त ने हमें बौना बना दिया ।
क्या-क्या ख्बाब सजाये थे, पतझड़ के साये में भी,
ख्बाब, ख्बाब ही रहते हैं, ऐ दिल समझने न दिया ।
राख के ढेर में निज को तलाशते थक चले कदम,
इंसा-इंसा है... खुदा नहीं, किस्मत तूने बता दिया ।
©Rohit Bansal
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