"श्रद्धा-भाव से बुला रही हूँ,
तुझसे कोई तो रिश्ता ज़रूर होगा;
एहसास के दामन में आँसुओं के मोती बिखरा रही हूँ,
चरणों में तेरे कोई तो मोती गिरा ज़रूर होगा।
मन में यकीन पर यकीन किए जा रही हूँ,
एहसास कुछ तो तेरे दिल में भी जगा ज़रूर होगा;
अब बाबरी-सी हुए जा रही हूँ,