ऐ मौसम-ए-पतझड़ तुझे रौनक गंवा‌ के क्या मिला ? उम्म | हिंदी विचार

"ऐ मौसम-ए-पतझड़ तुझे रौनक गंवा‌ के क्या मिला ? उम्मीद में बसंत के खुद को मिटा के क्या मिला? ऐ मौसम......? जो चमक चेहरे में हो तो आईने भी छेड़ते , चढ़ी परत जब सिलवटों की तब निगाहें फेरते । क्या हैसियत यौवन की है तुझको बता के क्या मिला? ऐ मौसम......? पूछता तुमसे हूं मैं पतझड़ ने मुझसे ए कहा , क्या कोई संसार में हर वखत जिंदा रहा । बेबसों की बेबसी तुझको जता के क्या मिला ? ऐ मौसम ....???"

ऐ मौसम-ए-पतझड़ तुझे रौनक गंवा‌ के क्या मिला ? उम्मीद में बसंत के खुद को मिटा के क्या मिला? ऐ मौसम......? जो चमक चेहरे में हो तो आईने भी छेड़ते , चढ़ी परत जब सिलवटों की तब निगाहें फेरते । क्या हैसियत यौवन की है तुझको बता के क्या मिला? ऐ मौसम......? पूछता तुमसे हूं मैं पतझड़ ने मुझसे ए कहा , क्या कोई संसार में हर वखत जिंदा रहा । बेबसों की बेबसी तुझको जता के क्या मिला ? ऐ मौसम ....???

@Sanjana @Kajal jha (kaju) @rasmi @sHiVa_JhA @Ranjit Kumar

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