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कहते हो क्या ये दिल्लगी क्या है
क्यों समझते नहीं खुशी क्या है
हमसे हो कर जुदा बता तुमको
इस जहाँ से ख़ुशी मिली क्या है
दर्द कभी तुम समझ कहाँ पाये
चौट दिल पर तेरे लगी क्या है
उम्र इक सजदे में तेरे गुजरी
अब बड़ी इससे बन्दगी क्या है
बिन तेरे पास कब ख़ुशी आई
दर्द की हम से दोस्ती क्या है
मय पिलाना हि छोड़ दी तुमने
फिर लबो पर ये तिश्नगी क्या है
हम खड़े हैं उसी किनारों पर
कौन समझा है ज़िन्दगी क्या है
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
1/3/2017
©laxman dawani
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