एक शाम एक रोज, जब मेरे लफ्ज मुझसे गिला करेंगे, एक | हिंदी कविता

"एक शाम एक रोज, जब मेरे लफ्ज मुझसे गिला करेंगे, एक शाम एक रोज, जब हम सिर्फ यादों में मिला करेंगे, एक शाम एक रोज, जब दर्द मेरा हमदर्द होगा पर शायद आंसू उस दर्द के साथी नहीं, एक शाम एक रोज, जब बातें सिर्फ तेरी होंगी पर तुझ से बातें नहीं, एक शाम एक रोज, जब मेरे हिस्से के सुकून पर तेरे नाम की बेसब्री होगी, एक शाम एक रोज, जब मेरे लिखे हर खत पर तेरा पता होगा पर तुझे इस बात की बेखबरी होगी, एक शाम, जब कई शामें तेरे इंतजार में बीतेगी एक शाम, जो कई शामो बाद आएगी और शायद जिसकी कई   शामो बाद तक मुझे तेरा इंतजार रहेगा| ©Shreya Shukla"

 एक शाम एक रोज, जब मेरे लफ्ज मुझसे गिला करेंगे,

एक शाम एक रोज, जब हम सिर्फ यादों में मिला करेंगे,

एक शाम एक रोज, जब दर्द मेरा हमदर्द होगा पर शायद आंसू उस दर्द के साथी नहीं,

एक शाम एक रोज, जब बातें सिर्फ तेरी होंगी पर तुझ से बातें नहीं,

एक शाम एक रोज, जब मेरे हिस्से के सुकून पर तेरे नाम की बेसब्री होगी,

एक शाम एक रोज, जब मेरे लिखे हर खत पर तेरा पता होगा पर तुझे इस बात की बेखबरी होगी,

एक शाम, जब कई शामें तेरे इंतजार में बीतेगी

एक शाम, जो कई शामो बाद आएगी और शायद जिसकी कई   शामो बाद तक मुझे तेरा इंतजार रहेगा|

©Shreya Shukla

एक शाम एक रोज, जब मेरे लफ्ज मुझसे गिला करेंगे, एक शाम एक रोज, जब हम सिर्फ यादों में मिला करेंगे, एक शाम एक रोज, जब दर्द मेरा हमदर्द होगा पर शायद आंसू उस दर्द के साथी नहीं, एक शाम एक रोज, जब बातें सिर्फ तेरी होंगी पर तुझ से बातें नहीं, एक शाम एक रोज, जब मेरे हिस्से के सुकून पर तेरे नाम की बेसब्री होगी, एक शाम एक रोज, जब मेरे लिखे हर खत पर तेरा पता होगा पर तुझे इस बात की बेखबरी होगी, एक शाम, जब कई शामें तेरे इंतजार में बीतेगी एक शाम, जो कई शामो बाद आएगी और शायद जिसकी कई   शामो बाद तक मुझे तेरा इंतजार रहेगा| ©Shreya Shukla

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