सब्र का पैमाना लबरेज़ हुआ, कासा-ए-चश्म छलक गया, फ़िर | हिंदी Shayari

"सब्र का पैमाना लबरेज़ हुआ, कासा-ए-चश्म छलक गया, फ़िर इक दफ़ा उनका ज़िक्र हुआ, दिल-ए-नादाँ बहक गया।। ©Sameri"

 सब्र का पैमाना लबरेज़ हुआ, कासा-ए-चश्म छलक गया,
फ़िर इक दफ़ा उनका ज़िक्र हुआ, दिल-ए-नादाँ बहक गया।।

©Sameri

सब्र का पैमाना लबरेज़ हुआ, कासा-ए-चश्म छलक गया, फ़िर इक दफ़ा उनका ज़िक्र हुआ, दिल-ए-नादाँ बहक गया।। ©Sameri

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