जय हो तेरी ऋषि कात्यायन पुत्री मां कात्यायनी,
स्वर्ण जैसे सुनहरी तन वाली आभा तेरी मन मोहिनी ।
ब्रह्मा,विष्णु व महेश के तेज से चतुर्थी को उत्पत्ति,
उस दिन से असुरों पर आई बहुत बड़ी विपत्ति ।
कात्यायनी मां का छठे दिवस करो तुम ध्यान,
सब बाधाएं दूर करें मां है कृपा निधान ।
लाल चुन्नी व मधु है मां को अत्यंत प्रिय,
ध्यान रखना मिलेगा तुम्हें शौर्य ।
जग की तारणहार देवी का कात्यायनी नाम,
मन से करो आराधना मिलेगा मोक्ष धाम ।
चार भुजा धारी करती सिंह की सवारी,
दुःखों को तुम हरती हम हैं तेरे आभारी ।
सब देवी-देवताओं को थी तुमसे बहुत आस,
दशमी को किया असुर महिषासुर का विनाश ।
कोई बाधा है अगर तुम्हारे विवाह में,
हो जाएगी पूरी देवी मां की चाह में ।
हे ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी,
रखना ध्यान तेरे चरणों में है यह कवि ।
मां कात्यायनी रोग,शोक, संताप,भय नाशिनी,
मां कात्यायनी अर्थ,धर्म, काम,मोक्ष दायिनी ।
©Shivkumar
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उस दिन से असुरों पर आई बहुत बड़ी विपत्ति ।