आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्व | English Bhakti

"आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा आत्मा पवित्र और शुद्ध होती मैला तो तन और मन होता जल को क्या मालूम बिस्लेरी का काम बुझाना प्यास जल का आत्मा का वास तन का मन क्या जाने उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना ©Mahadev Son"

 आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल 
प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती

समुद्र से बादल बन मेंह बनकर  फिर 
बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में 

चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा 
आत्मा पवित्र और शुद्ध होती

मैला तो तन और मन होता
जल को क्या मालूम बिस्लेरी का 
काम बुझाना प्यास जल का 

आत्मा का वास तन का मन क्या जाने
उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन

मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना

©Mahadev Son

आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा आत्मा पवित्र और शुद्ध होती मैला तो तन और मन होता जल को क्या मालूम बिस्लेरी का काम बुझाना प्यास जल का आत्मा का वास तन का मन क्या जाने उसको तो बस रहता इंतजार उस दिन मिलन होना प्रभु से कब इसी आस में जीना ©Mahadev Son

आत्मा जल समान सा शुद्ध निर्मल
प्रवेश निकास का स्वयं राह ढूंढ लेती

समुद्र से बादल बन मेंह बनकर फिर
बरसती बहती मिल जाना अंत समुद्र में

चक्र आत्मा का भी कुछ ऐसा
आत्मा पवित्र और शुद्ध होती

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