समझ बढ़ी या सोच! वर्ना पड़ती रिश्तों में मोच! लगा | हिंदी मोटिवेशनल Vi

"समझ बढ़ी या सोच! वर्ना पड़ती रिश्तों में मोच! लगा के बड़बोले पन की अप्रोच! जब झांका भीतर अंदर अपने मिली विकारों से भरी जेसे कोच ! फ़िर पूछा खुद से समझ बढ़ी या सोच! ©AMIT RAJPUT "

समझ बढ़ी या सोच! वर्ना पड़ती रिश्तों में मोच! लगा के बड़बोले पन की अप्रोच! जब झांका भीतर अंदर अपने मिली विकारों से भरी जेसे कोच ! फ़िर पूछा खुद से समझ बढ़ी या सोच! ©AMIT RAJPUT

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