White मोमबत्ती लिए हाथों में।
फिर रहे बाजारों में।
न्याय की गुहार लगाते,
गली गली, चौराहों में।
नित नए अखबारों में।
संसद के गलियारों।
बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ ।
नारा गूंजे सरकारों में।
नित नए कानूनों में।
जाने कितनी फाइलों में।
न्याय की आस लिए,
आजीवन अक्ष्रु बहते नयनों में।
काश अगर मैं लड़का होती ।
अस्मत मेरी यूं ना लुटती ।
आज मैं भी होती जिंदा ,
खून से लथपथ लाश ना दिखती।
हर बेटी करे सवाल ।
क्या बेटी होना है जी जंजाल।
किस आज़ादी का जश्न मनाएं,
जब बलात्कार बने है उसका काल।
रश्मि वत्स।
©Rashmi Vats
#Insaaf_kab_milega