चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं " समाज के दायरों औ | हिंदी Poetry V

""चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं " समाज के दायरों और सोच के आगे , थोड़ा अलग ढल ही जाते हैं , चलो बचपन की शरारतों व बातों को पीछे छोड़कर सब और बड़े हो जाते हैं कितने पावन मोहक थे वो दिन , जिसमें मगरूर रहकर बस खुश थे सभी , आज उन बातों को भुलकर फ़िर से ,दुनियाँ में कुछ कदम खो जाते हैं , नहीँ खेलते वो खेल जो , हारने पे भी हँसा जाते हैं , ऐसा कुछ करेंगे जो सिर्फ जीतना सिखाये , खुद के साथ दूसरों को हँसाने का अनूठा राज ढूँढ़ लाते हैं , चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं न करेंगे किसी रस्म रिवाज़ की परवाह जीवन की आपाधापी में सभी अवांछित रिवाजों को भुला देते हैं , चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं । @स्वाति की कलम से.... ©swati soni "

"चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं " समाज के दायरों और सोच के आगे , थोड़ा अलग ढल ही जाते हैं , चलो बचपन की शरारतों व बातों को पीछे छोड़कर सब और बड़े हो जाते हैं कितने पावन मोहक थे वो दिन , जिसमें मगरूर रहकर बस खुश थे सभी , आज उन बातों को भुलकर फ़िर से ,दुनियाँ में कुछ कदम खो जाते हैं , नहीँ खेलते वो खेल जो , हारने पे भी हँसा जाते हैं , ऐसा कुछ करेंगे जो सिर्फ जीतना सिखाये , खुद के साथ दूसरों को हँसाने का अनूठा राज ढूँढ़ लाते हैं , चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं न करेंगे किसी रस्म रिवाज़ की परवाह जीवन की आपाधापी में सभी अवांछित रिवाजों को भुला देते हैं , चलो अब कुछ और बड़े हो जाते हैं । @स्वाति की कलम से.... ©swati soni

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