सवाल ?
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पल-पल दम तोड़ती साँसों में ख़ुदा से ज़िंदगी की दुआ कैसे करूँ ख़ामोश लबों के पीछे छुपे दर्द को बयां कैसे करूँ जिनकी फ़ितरत है ढाना उनके सितम सहकर, उनपर दया कैसे करूँ बीती बात भूलकर दया कर भी दूँ मगर अपने ज़ख़्मों की दवा कैसे करूँ
ख़ुदगर्जी के लिए जिसने दग़ा दिया अब, उनसे वफ़ा कैसे करूँ जान पर जो बन आई है ज़िंदगी, हिफ़ाज़त के वास्ते अब मौत से सुलह कैसे करूँ ख़ुशी नसीब में कितनी है पता नहीं मगर ग़म को ज़िंदगी से जुदा कैसे करूँ ख़ुद को हक़ीक़त से बचाने की ये खता कैसे करूँ
रास्ता और मंज़िल सामने हैं, इस वक़्त और मौक़े को ज़ाया कैसे करूँ मंज़िल मिल ही जाए कोशिश पूरी रहेगी मगर ये वादा कैसे करूँ सँवारते-सँवारते ज़िंदगी एक उम्र गुज़र गई, जीने के लिए ख़ुद को जवां कैसे करूँ फिर सोचता हूँ ख़ुद के शिक़वे-शिक़ायतों से ख़ुदा को ख़फ़ा कैसे करूँ
मनीष राज
©Manish Raaj
#सवाल ?