मैं और मेरी कहानी करूं कहां से शुरू, इसी सोच में

"मैं और मेरी कहानी करूं कहां से शुरू, इसी सोच में थी अब तक । पर अब और नहीं, देती हूं लिख,, सहन करूंगी कब तक ।। नहीं जानती कि यह है कविता, निबंध या शायरी, बस जानती हूं कि है मेरी भावनाओं का गहरा सागर.. लिखा होता अगर बचपन से तो शायद इतनी भावनाएं मेरी ना होती कहीं गुम.. और ना मैं वह लड़की सी गुमसुम.. इस सागर में होंगे गोते मेरी तन्हाईयों के .. और शायद होंगी कुछ एक शामिल मेरी अच्छाइयां भी.. बचपन में मिले थे दो मोती जो थे मेरे मां और पापा .. हुआ करते थे वो दुनिया बेशक अभी है.. वही दुनिया जो खुश है आपसे ,गर है आपके पास धन दौलत। खूब मिलेगी उनसे मोहब्बत , गर लाओगे अच्छे अंक।। हां जानती हूं , हूं मैं लड़की तो रहना होगा उसी के लिबास में ,, पर खुश हूं कि शायद लड़का होती तो नहीं होती उनसे इतनी मोहब्बत गहरी ,, हां नहीं सुन सकती किसी गैर से , अपने अपनों के खिलाफ कुछ.. पर क्या उनका इतना भी हक नहीं ,, कि मुझ पर जता सके हक कुछ ।। शायद नहीं होगा यकीं मुझ पर .. कमबख्त लड़की हूं ना , पर जिस बेटे के अंकों पर करते है , इतना गरूर जो, वो भी देख लेंगे .. मगर वो चांद है इतना मशरूफ खुद में , छीन ली गई आज उससे मशरूफता कि वजह , तो डर गए वो मोती , जिन्होंने मिलकर छीनी वो वजह चांद से ,, क्योंकि चांद की चांदनी और बुढ़ापा तो आना है ना ! हां यही वजह छीनी तो मुझसे भी.. और फिर से आज भी.. पर पहली दफा हुआ था पहले कुछ एक साल.. जो डर था आज उनकी आंखो में। शायद कहीं गुम था पहले , उनकी निगाहों में ।। मन में होते है , जज्बातों के गहरे समंदर । पर अब भी है , होठों पर फीकी बेरंगी मुस्कान .. और कुछ एक सच आंखो के अंदर ।। कुछ चंद पलों में ही पढ़ लेते है , वो मोती उस चांद की निगाहों के झरोखों से.. बस वो आंखो का थोड़ा सा पानी । फिर क्यों लग जाएंगे उनको सालों , मेरी आंखो के समंदर को बस देख भर लेने में।। या शायद होगा फर्क ही , मेरी और उसकी आंखो में , जानते तो होंगे ही ना आप , कमबख्त लड़की हूं ना ।। फिलहाल लौट आया है चांद घर को , हां , ना सही वजह साथ तो क्या साथ मोतियों का ही तो दुनिया है और ये दुनिया नसीबवाले को ही मिलती है जनाब , और नसीबवाला अक्सर चांद को ही होता है होना । और गर है औकात किसी की तो वो फीकी मुस्कान हटा के दिखाना ।। ©Anita SHIVraan"

 मैं और मेरी कहानी
करूं कहां से शुरू,  इसी सोच में थी अब तक । 
पर अब और नहीं, देती हूं लिख,, सहन करूंगी कब तक ।। 
नहीं जानती कि यह है कविता, निबंध या शायरी, 
 बस जानती हूं कि है मेरी भावनाओं का गहरा सागर.. 
लिखा होता अगर बचपन से तो शायद इतनी भावनाएं मेरी ना होती कहीं गुम.. 
और ना मैं वह लड़की सी  गुमसुम..
 इस सागर में होंगे गोते मेरी तन्हाईयों के .. 
और शायद होंगी कुछ एक  शामिल मेरी अच्छाइयां भी..
बचपन में मिले थे दो मोती जो थे मेरे मां और पापा .. 
हुआ करते थे वो  दुनिया  बेशक अभी है..  
वही दुनिया जो खुश है आपसे ,गर है आपके पास धन दौलत। 
खूब मिलेगी उनसे मोहब्बत , गर लाओगे अच्छे अंक।।
हां जानती हूं , हूं मैं लड़की तो रहना होगा उसी के लिबास में ,,
पर खुश हूं कि शायद लड़का होती तो नहीं होती   उनसे इतनी मोहब्बत  गहरी ,,
हां नहीं  सुन सकती किसी गैर से , 
 अपने अपनों के खिलाफ कुछ..
  पर क्या उनका इतना भी हक नहीं ,, 
कि मुझ पर जता सके हक कुछ ।। 
शायद नहीं होगा यकीं मुझ पर ..  कमबख्त लड़की हूं ना ,
पर जिस बेटे के अंकों पर करते है , इतना गरूर जो, वो भी देख लेंगे .. 
मगर वो चांद है इतना मशरूफ खुद में , 
छीन ली गई आज उससे मशरूफता कि वजह , 
तो डर गए वो मोती , 
जिन्होंने मिलकर छीनी वो वजह चांद से ,,
क्योंकि चांद की चांदनी और बुढ़ापा तो आना है ना ! 
हां यही वजह छीनी तो मुझसे भी.. और फिर से आज भी.. 
पर पहली दफा हुआ था पहले कुछ एक साल.. 
जो डर था आज उनकी आंखो में।
शायद कहीं गुम था पहले , उनकी निगाहों में ।। 
मन में होते है , जज्बातों के गहरे समंदर ।  
पर अब  भी है , होठों पर फीकी बेरंगी मुस्कान .. 
और कुछ एक सच आंखो के अंदर ।। 
कुछ चंद पलों में ही पढ़ लेते है , वो मोती उस चांद की निगाहों के झरोखों से.. 
 बस वो आंखो का थोड़ा सा पानी ।
फिर क्यों लग जाएंगे उनको सालों , 
मेरी  आंखो के समंदर को बस देख भर लेने में।।
या शायद होगा फर्क ही , 
मेरी और उसकी आंखो में , जानते तो होंगे ही ना आप , 
कमबख्त लड़की हूं ना ।। 
फिलहाल लौट आया है चांद घर को , 
हां , ना सही वजह साथ तो क्या 
  साथ  मोतियों का ही तो दुनिया है और ये दुनिया नसीबवाले को ही मिलती है जनाब , 
और नसीबवाला अक्सर चांद को ही होता है होना । 
 और गर है औकात किसी की तो वो फीकी मुस्कान हटा के दिखाना ।।

©Anita SHIVraan

मैं और मेरी कहानी करूं कहां से शुरू, इसी सोच में थी अब तक । पर अब और नहीं, देती हूं लिख,, सहन करूंगी कब तक ।। नहीं जानती कि यह है कविता, निबंध या शायरी, बस जानती हूं कि है मेरी भावनाओं का गहरा सागर.. लिखा होता अगर बचपन से तो शायद इतनी भावनाएं मेरी ना होती कहीं गुम.. और ना मैं वह लड़की सी गुमसुम.. इस सागर में होंगे गोते मेरी तन्हाईयों के .. और शायद होंगी कुछ एक शामिल मेरी अच्छाइयां भी.. बचपन में मिले थे दो मोती जो थे मेरे मां और पापा .. हुआ करते थे वो दुनिया बेशक अभी है.. वही दुनिया जो खुश है आपसे ,गर है आपके पास धन दौलत। खूब मिलेगी उनसे मोहब्बत , गर लाओगे अच्छे अंक।। हां जानती हूं , हूं मैं लड़की तो रहना होगा उसी के लिबास में ,, पर खुश हूं कि शायद लड़का होती तो नहीं होती उनसे इतनी मोहब्बत गहरी ,, हां नहीं सुन सकती किसी गैर से , अपने अपनों के खिलाफ कुछ.. पर क्या उनका इतना भी हक नहीं ,, कि मुझ पर जता सके हक कुछ ।। शायद नहीं होगा यकीं मुझ पर .. कमबख्त लड़की हूं ना , पर जिस बेटे के अंकों पर करते है , इतना गरूर जो, वो भी देख लेंगे .. मगर वो चांद है इतना मशरूफ खुद में , छीन ली गई आज उससे मशरूफता कि वजह , तो डर गए वो मोती , जिन्होंने मिलकर छीनी वो वजह चांद से ,, क्योंकि चांद की चांदनी और बुढ़ापा तो आना है ना ! हां यही वजह छीनी तो मुझसे भी.. और फिर से आज भी.. पर पहली दफा हुआ था पहले कुछ एक साल.. जो डर था आज उनकी आंखो में। शायद कहीं गुम था पहले , उनकी निगाहों में ।। मन में होते है , जज्बातों के गहरे समंदर । पर अब भी है , होठों पर फीकी बेरंगी मुस्कान .. और कुछ एक सच आंखो के अंदर ।। कुछ चंद पलों में ही पढ़ लेते है , वो मोती उस चांद की निगाहों के झरोखों से.. बस वो आंखो का थोड़ा सा पानी । फिर क्यों लग जाएंगे उनको सालों , मेरी आंखो के समंदर को बस देख भर लेने में।। या शायद होगा फर्क ही , मेरी और उसकी आंखो में , जानते तो होंगे ही ना आप , कमबख्त लड़की हूं ना ।। फिलहाल लौट आया है चांद घर को , हां , ना सही वजह साथ तो क्या साथ मोतियों का ही तो दुनिया है और ये दुनिया नसीबवाले को ही मिलती है जनाब , और नसीबवाला अक्सर चांद को ही होता है होना । और गर है औकात किसी की तो वो फीकी मुस्कान हटा के दिखाना ।। ©Anita SHIVraan

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