इन खुली लटों को अपनी,
भला क्यों तुम संवारते नहीं........
अपना वक्त अब तुम क्यों,
साथ में हमारे गुज़ारते नहीं.........
कहते हो तुम तलाश में हो,
किसी महबूब की आज-कल.......
फ़िर भला क्यों तुम अपनी,
ये नज़र हम पर मारते नहीं..........
©Poet Maddy
इन खुली लटों को अपनी,
भला क्यों तुम संवारते नहीं........
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