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"White Kavya Logo आज का काव्य हलचल आज का शब्द आज का विचार सोशल मीडिया मेरे अल्फ़ाज़ किताब समीक्षा हमारे कवि वीडियो रचना भेजिए Hindi News › Kavya › Viral Kavya › The most viral hindi poetry विज्ञापन ये हैं हिन्दी की सबसे वायरल कविताएं Kavya Desk काव्य डेस्क The most viral hindi poetry Viral Kavya विज्ञापन इंटरनेट के दौर में कवि और लेखक अपनी रचनाओं को फ़ेसबुक और अन्य सोशल माध्यमों पर साझा कर देते हैं और ऐसे में की बार यह रचनाएं वायरल हो जाती हैं और ख़ूब सराही जाती हैं। पेश हैं बीते समय की ख़ास वायरल कविताएं सुनो द्राैपदी ! शस्त्र उठा लो/ पुष्यमित्र उपाध्याय सुनो द्राैपदी ! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे... छोड़ो मेहंदी खड्ग संभालो खुद ही अपना चीर बचा लो द्यूत बिछाए बैठे शकुनि, मस्तक सब बिक जाएंगे सुनो द्राैपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से कैसी रक्षा मांग रही हो दुःशासन दरबारों से स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं वे क्या लाज बचाएंगे सुनो द्राैपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है तुम ही कहो ये अंश्रु तुम्हारे, किसको क्या समझाएंगे? सुनो द्राैपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे विज्ञापन चेहरे पर तेजाब फेंकने के बाद लड़की ने लड़के से ये कहा... एक लड़की ने एक लड़के का प्यार कबूल नहीं किया तो लड़के ने लड़की के मुँह पर तेजाब फेंक दिया तो लड़की ने लड़के से चंद पंक्तियां कहीं आप एक बार इन पंक्तियों को जरूर पढ़ना... चलो, फेंक दिया सो फेंक दिया अब कसूर भी बता दो मेरा तुम्हारा इजहार था मेरा इंकार था बस इतनी सी बात पर फूंक दिया तुमने चेहरा मेरा.... गलती शायद मेरी थी प्यार तुम्हारा देख न सकी इतना पाक प्यार था कि उसको मैं समझ ना सकी.... अब अपनी गलती मानती हूँ क्या अब तुम अपनाओगे मुझको? क्या अब अपना बनाओगे मुझको? क्या अब सहलाओगे मेरे चहरे को? जिन पर अब फफोले हैं मेरी आंखों में आंखें डालकर देखोगे? जो अब अंदर धंस चुकी हैं जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं चलाओगे अपनी उंगलियां मेरे गालों पर? जिन पर पड़े छालों से अब पानी निकलता है हाँ, शायद तुम कर लोगे तुम्हारा प्यार तो सच्चा है ना? अच्छा! एक बात तो बताओ ये ख्याल 'तेजाब' का कहां से आया? क्या किसी ने तुम्हें बताया? या जेहन में तुम्हारे खुद ही आया? अब कैसा महसूस करते हो तुम मुझे जलाकर? गौरान्वित ? या पहले से ज्यादा और भी मर्दाना..? तुम्हें पता है सिर्फ मेरा चेहरा जला है जिस्म अभी पूरा बाकी है एक सलाह दूं एक तेजाब का तालाब बनवाओ फिर इसमें मुझसे छलांग लगवाओ जब पूरी जल जाऊंगी मैं फिर शायद तुम्हारा प्यार मुझमें और गहरा और सच्चा होगा एक दुआ है अगले जन्म में मैं तुम्हारी बेटी बनूं और मुझे तुम जैसा आशिक फिर मिले शायद तुम फिर समझ पाओगे तुम्हारी इस हरकत से मुझे और मेरे परिवार को कितना दर्द सहना पड़ा है तुमने मेरा पूरा जीवन बर्बाद कर दिया है। - हमें यह शायरी सोशल मीडिया से हासिल हुई है। हमें इसके रचयिता का नाम पता नहीं है। अगर आपको इस बारे में जानकारी है तो हमें सूचित करें, हमें नाम सार्वजनिक करने में प्रसन्नता होगी। समाज को आईना दिखाती यह वायरल कविता कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं। नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं। बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी। मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं। अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं। हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं। बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर। मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं। कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। - हमें यह शायरी सोशल मीडिया से हासिल हुई है। हमें इसके रचयिता का नाम पता नहीं है। अगर आपको इस बारे में जानकारी है तो हमें सूचित करें, हमें नाम सार्वजनिक करने में प्रसन्नता होगी। सहमे स्वप्न... काँधे पर टंगा बस्ता चॉकलेट की बचपनी चाहत और फिर बाँबियों-झाड़ियों में से निकलते वे सांप ,भेड़िये और लकड़बग्घे मासूम गले पर खूनी पंजे देह की कुत्सित भूख में बज़बज़ाते लिज़लिज़ाते कीड़े कर देते हैं उसके जिस्म को तार-तार। एक अहसास चीख कर आर्तनाद में बदलता है और वह जूझती रही, चीखती रही, उसका बचपन टांग दिया गया बर्बर सभ्यता के सलीबों से सपने भी सहमे हैं उस सात साल की बच्ची के। ©"SILENT""

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सुनो द्राैपदी ! शस्त्र उठा लो/ पुष्यमित्र उपाध्याय
सुनो द्राैपदी ! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे...
छोड़ो मेहंदी खड्ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जाएंगे
सुनो द्राैपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे

कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अखबारों से
कैसी रक्षा मांग रही हो दुःशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्राैपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे

कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है
होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अंश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझाएंगे?
सुनो द्राैपदी! शस्त्र उठालो अब गोविंद ना आएंगे
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चेहरे पर तेजाब फेंकने के बाद लड़की ने लड़के से ये कहा...
एक लड़की ने एक लड़के का प्यार
कबूल नहीं किया तो लड़के ने
लड़की के मुँह पर तेजाब फेंक दिया
तो लड़की ने लड़के से चंद पंक्तियां
कहीं आप एक बार इन पंक्तियों को
जरूर पढ़ना...
 
चलो, फेंक दिया सो फेंक दिया
अब कसूर भी बता दो मेरा
तुम्हारा इजहार था
मेरा इंकार था
बस इतनी सी बात पर
फूंक दिया तुमने
चेहरा मेरा....

गलती शायद मेरी थी
प्यार तुम्हारा देख न सकी
इतना पाक प्यार था
कि उसको मैं समझ ना सकी....
अब अपनी गलती मानती हूँ
क्या अब तुम अपनाओगे मुझको?
क्या अब अपना बनाओगे मुझको?

 

 

 

क्या अब सहलाओगे मेरे चहरे को?
जिन पर अब फफोले हैं
मेरी आंखों में आंखें डालकर देखोगे?
जो अब अंदर धंस चुकी हैं
जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं
चलाओगे अपनी उंगलियां मेरे गालों पर?
जिन पर पड़े छालों से अब पानी निकलता है

 

हाँ, शायद तुम कर लोगे
तुम्हारा प्यार तो सच्चा है ना?
अच्छा! एक बात तो बताओ
ये ख्याल 'तेजाब' का कहां से आया?
क्या किसी ने तुम्हें बताया?
या जेहन में तुम्हारे खुद ही आया?
अब कैसा महसूस करते हो
तुम मुझे जलाकर?
गौरान्वित ?
या पहले से ज्यादा
और भी मर्दाना..?

तुम्हें पता है
सिर्फ मेरा चेहरा जला है
जिस्म अभी पूरा बाकी है
एक सलाह दूं
एक तेजाब का तालाब बनवाओ
फिर इसमें मुझसे छलांग लगवाओ
जब पूरी जल जाऊंगी मैं
फिर शायद तुम्हारा प्यार मुझमें
और गहरा और सच्चा होगा

 

 

एक दुआ है
अगले जन्म में
मैं तुम्हारी बेटी बनूं
और मुझे तुम जैसा
आशिक फिर मिले
शायद तुम फिर समझ पाओगे
तुम्हारी इस हरकत से
मुझे और मेरे परिवार को
कितना दर्द सहना पड़ा है
तुमने मेरा पूरा जीवन
बर्बाद कर दिया है।

- हमें यह शायरी सोशल मीडिया से हासिल हुई है। हमें इसके रचयिता का नाम पता नहीं है। अगर आपको इस बारे में जानकारी है तो हमें सूचित करें, हमें नाम सार्वजनिक करने में प्रसन्नता होगी।

समाज को आईना दिखाती यह वायरल कविता
कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

कटा जब शीश सैनिक का
तो हम खामोश रहते हैं।
कटा एक सीन पिक्चर का
तो सारे बोल जाते हैं।

नयी नस्लों के ये बच्चे
जमाने भर की सुनते हैं।
मगर माँ बाप कुछ बोले
तो बच्चे बोल जाते हैं।

बहुत ऊँची दुकानों में
कटाते जेब सब अपनी।
मगर मज़दूर माँगेगा
तो सिक्के बोल जाते हैं।

 

 

अगर मखमल करे गलती
तो कोई कुछ नहीँ कहता।
फटी चादर की गलती हो
तो सारे बोल जाते हैं।

हवाओं की तबाही को
सभी चुपचाप सहते हैं।
च़रागों से हुई गलती
तो सारे बोल जाते हैं।

बनाते फिरते हैं रिश्ते
जमाने भर से अक्सर।
मगर जब घर में हो जरूरत
तो रिश्ते भूल जाते हैं।
 
कहाँ पर बोलना है
और कहाँ पर बोल जाते हैं।
जहाँ खामोश रहना है
वहाँ मुँह खोल जाते हैं।

- हमें यह शायरी सोशल मीडिया से हासिल हुई है। हमें इसके रचयिता का नाम पता नहीं है। अगर आपको इस बारे में जानकारी है तो हमें सूचित करें, हमें नाम सार्वजनिक करने में प्रसन्नता होगी।

सहमे स्वप्न...
काँधे पर टंगा बस्ता
चॉकलेट की बचपनी चाहत
और फिर
बाँबियों-झाड़ियों में से निकलते
वे सांप ,भेड़िये और लकड़बग्घे
मासूम गले पर खूनी पंजे
देह की कुत्सित भूख में
बज़बज़ाते लिज़लिज़ाते कीड़े
कर देते हैं उसके जिस्म को
तार-तार।

एक अहसास चीख कर
आर्तनाद में बदलता है
और वह जूझती रही,
चीखती रही,
उसका बचपन टांग दिया गया
बर्बर सभ्यता के सलीबों से
सपने भी सहमे हैं उस
सात साल की बच्ची के।

©"SILENT"

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