आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म "मन" का, मरण " तन" का हुआ
सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका
सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी
त्याग देगा भर जायेगा "मन", इस तन से
"मन" चंचल पर अज़र बस निर्भर कर्मों पर
कर्म होंगें जैसे "मन" जन्म का "तन" पायेगा वैसे
जैसे जेब में पैसे होते वैसे वस्त्र खरीदता तू
हिसाब किताब सब यहाँ होता पैसों से
वैसे मन का होता वहाँ सब कर्मों से
पायेगा क्या भोगेगा क्या फिर से चंचल
"मन" को भी न मालूम वर्ना छोड़ता न
कभी इस "तन" को ...!
©Mahadev Son
आत्मा थी अज़र है अमर रहेगी
जन्म मन का, मरण तन का हुआ
सृजन हुआ जिसका नष्ट होना तय उसका
सफर यही तक का यही तेरी ही भूल थी
त्याग देगा भर जायेगा मन, इस तन से
मन चंचल पर अज़र बस कर्मों पे निर्भर है