समर्पण " हो अंतस में प्रेमभाव तो.... उपहार बन | हिंदी कविता Video

""समर्पण " हो अंतस में प्रेमभाव तो.... उपहार बन जाता है जीवन। गर वर्तमान में रहना आ जाये तो.... उत्सव बन जाता है हर पल/हर क्षण। मुसाफिर हैं हम , है दुनिया रैन बसेरा.... सत्य की इस तपिश से शांत हो जाता है मन। सफेदपोश मुखौटों में बेशक छुपा लो.... अपने अंतर्मन की कलुषता... स्वयं से नज़र मिलाओगे कैसे जब तुम्हारे सत्य का अक्स दिखायेगा दर्पण। शुभ विचारों का प्रस्फुटन तभी सम्भव है.... जब चेतना को मिले मुक्त आध्यात्मिक गगन। तानाशाही की मूढ़ता ही.... बांधती है तेरा/मेरा की संकीर्णता में.... आत्मीय सम्बन्ध निर्बन्ध हैं.... आत्मा मुक्त है शाश्वत है... आत्मा को बांध सकता है सिर्फ प्रेमिल बंधन। साँस साँस है प्रभु की सौगात तू किस अहंकार में अकड़ता है... शिवशक्ति के चरणों में बैठ जा.... कर दे अपने " मैं " का समर्पण। (स्वरचित:अनामिका अर्श) ©अर्श "

"समर्पण " हो अंतस में प्रेमभाव तो.... उपहार बन जाता है जीवन। गर वर्तमान में रहना आ जाये तो.... उत्सव बन जाता है हर पल/हर क्षण। मुसाफिर हैं हम , है दुनिया रैन बसेरा.... सत्य की इस तपिश से शांत हो जाता है मन। सफेदपोश मुखौटों में बेशक छुपा लो.... अपने अंतर्मन की कलुषता... स्वयं से नज़र मिलाओगे कैसे जब तुम्हारे सत्य का अक्स दिखायेगा दर्पण। शुभ विचारों का प्रस्फुटन तभी सम्भव है.... जब चेतना को मिले मुक्त आध्यात्मिक गगन। तानाशाही की मूढ़ता ही.... बांधती है तेरा/मेरा की संकीर्णता में.... आत्मीय सम्बन्ध निर्बन्ध हैं.... आत्मा मुक्त है शाश्वत है... आत्मा को बांध सकता है सिर्फ प्रेमिल बंधन। साँस साँस है प्रभु की सौगात तू किस अहंकार में अकड़ता है... शिवशक्ति के चरणों में बैठ जा.... कर दे अपने " मैं " का समर्पण। (स्वरचित:अनामिका अर्श) ©अर्श

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