शर्म तो नही आई होगी सपने उनके तोड़कर बहुत तड़पाया है | हिंदी कविता

"शर्म तो नही आई होगी सपने उनके तोड़कर बहुत तड़पाया है उनको अपने हाल में छोड़कर क्या तूने इम्तिहान लिया है उनके पैरों का क्या तू दर्द समझेगा उनका,तुझे शोक है सैरो का कहाँ गए वो वादे तेरे कहाँ गयी वो कसमे वो चल रहा है सफर मीलों का,क्या नही है ये तेरे बस में गरीब ने दिया वोट सोचकर गरीबी एक दिन हटाएगा बीते छः साल सोचता रह गया वो अच्छा दिन कब आएगा"

 शर्म तो नही आई होगी सपने उनके तोड़कर
बहुत तड़पाया है उनको अपने हाल में छोड़कर

क्या तूने इम्तिहान लिया है उनके पैरों का
क्या तू दर्द समझेगा उनका,तुझे शोक है सैरो का

कहाँ गए वो वादे तेरे कहाँ गयी वो कसमे
वो चल रहा है सफर मीलों का,क्या नही है ये तेरे बस में

गरीब ने दिया वोट सोचकर गरीबी एक दिन हटाएगा
बीते छः साल सोचता रह गया वो अच्छा दिन कब आएगा

शर्म तो नही आई होगी सपने उनके तोड़कर बहुत तड़पाया है उनको अपने हाल में छोड़कर क्या तूने इम्तिहान लिया है उनके पैरों का क्या तू दर्द समझेगा उनका,तुझे शोक है सैरो का कहाँ गए वो वादे तेरे कहाँ गयी वो कसमे वो चल रहा है सफर मीलों का,क्या नही है ये तेरे बस में गरीब ने दिया वोट सोचकर गरीबी एक दिन हटाएगा बीते छः साल सोचता रह गया वो अच्छा दिन कब आएगा

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