अगर धूप में तपन ना होती, तो छांव की कदर कौन करता,

"अगर धूप में तपन ना होती, तो छांव की कदर कौन करता, उदासी सी दबी थी दिल में, नहीं तो यूं जाग कर शाम से सहर कौन करता । कुछ तो कसक बाकी होगी रिश्ते में, नहीं तो अब तक तेरा इंतजार हर पहर कौन करता। नज़रअंदाज होकर भी ढूंढती थी नज़र तुझे, यूंही समा में तेरी तरफ नजर कौन करता । कोई दोस्त नहीं था बीच में इसलिए खुद आना पड़ा, तू अब भी है मुझमें ज़िंदा, तुझे ये खबर कौन करता। ©SWARNIMA BAJPAI"

 अगर धूप में तपन ना होती, 
तो छांव की कदर कौन करता,

उदासी सी दबी थी दिल में, नहीं तो
 यूं जाग कर शाम से सहर कौन करता ।

कुछ तो कसक बाकी होगी रिश्ते में, नहीं तो
अब तक तेरा इंतजार हर पहर कौन करता।

नज़रअंदाज होकर भी ढूंढती थी नज़र तुझे, 
यूंही समा में तेरी तरफ नजर कौन करता ।

कोई दोस्त नहीं था बीच में इसलिए खुद आना पड़ा, 
तू अब भी है मुझमें ज़िंदा, तुझे ये खबर कौन करता।

©SWARNIMA BAJPAI

अगर धूप में तपन ना होती, तो छांव की कदर कौन करता, उदासी सी दबी थी दिल में, नहीं तो यूं जाग कर शाम से सहर कौन करता । कुछ तो कसक बाकी होगी रिश्ते में, नहीं तो अब तक तेरा इंतजार हर पहर कौन करता। नज़रअंदाज होकर भी ढूंढती थी नज़र तुझे, यूंही समा में तेरी तरफ नजर कौन करता । कोई दोस्त नहीं था बीच में इसलिए खुद आना पड़ा, तू अब भी है मुझमें ज़िंदा, तुझे ये खबर कौन करता। ©SWARNIMA BAJPAI

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