कुछ ख्वाब बस ख्वाब ही रह जाते हैं।
समय कितना परिवर्तित कर देता है सब कुछ।
इस वक़्त ने मुझसे मेरी स्वतंत्र अभिव्यक्ति छीनी है।
उन्मुक्तताएँ लील गया ये।
इस वक़्त ने हँसी छीनी है। इसने आत्मविश्वास छीना है।
बुद्धिमत्ता से लेकर स्मरण शक्ति जो मेरी सबसे बड़ी विशेषता थी,
वो भी छीन ली। इसने जो रिक्तियां भरी हैं, कभी मिट नहीं पाएंगी।
मैं जो लिखना चाहती थी वे शब्द, वे भाव इसने छीने और भर
दी गहरी नीरसता, उदासी और अनिश्चितताएं।
पर हाँ! इतनी नकारात्मकताओं के बावजूद
इस वक्त ने मुझमें जो साहस पैदा किया उसके लिए इसकी आभारी हूँ।
समर्पण का भाव मुझमें शुरू से रहा, लेकिन इस वक़्त ने मुझमें बसे
उस समर्पण भाव को दुगुना किया।
इसने रिश्तों की अहमियत बताई और अपने पराए का बोध कराया।
इसी वक्त ने बताया कि मैं उतनी कमज़ोर नहीं हूँ,
जितना मैं खुद को समझती हूँ। बल्कि हर आँसूं को पोंछ कर
चट्टान की तरह हर मुसीबत के सामने खड़े रह जाने की
काबिलियत भी है मुझमें।
ये वक्त ही है जिसने मुझे बताया कि जितना......
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©Divya Joshi
#Time
मनकही: एहसान वक्त के
कुछ ख्वाब बस ख्वाब ही रह जाते हैं। समय कितना परिवर्तित कर देता है सब कुछ। इस वक़्त ने मुझसे मेरी स्वतंत्र अभिव्यक्ति छीनी है। उन्मुक्तताएँ लील गया ये। इस वक़्त ने हँसी छीनी है। इसने आत्मविश्वास छीना है। बुद्धिमत्ता से लेकर स्मरण शक्ति जो मेरी सबसे बड़ी विशेषता थी, वो भी छीन ली। इसने जो रिक्तियां भरी हैं, कभी मिट नहीं पाएंगी।
मैं जो लिखना चाहती थी वे शब्द, वे भाव इसने छीने और भर दी गहरी नीरसता, उदासी और अनिश्चितताएं।
पर हाँ! इतनी नकारात्मकताओं के बावजूद
इस वक्त ने मुझमे