मासूम जान ही तो थी जो लड़ रही थी सारे जहां से ना त | हिंदी विचार

"मासूम जान ही तो थी जो लड़ रही थी सारे जहां से ना तलवार थी ना ही ढाल सीतमगरो की सह कर मार वो अपनी जिद पर अड़ी थी सत्याग्रह करना हो चाहे करना हो डांडी मार्च वो अपने निश्चय पर अडिग थी अनशन कर कइयों बार झुका दी अंग्रेजों की वार करा देश को तब आजाद उस नन्ही मासूम जान को प्रणाम। ©Deepti Agrawal"

 मासूम जान ही तो थी
जो लड़ रही थी सारे जहां से
ना तलवार थी ना ही ढाल
सीतमगरो की सह कर मार
वो अपनी जिद पर अड़ी थी
सत्याग्रह करना हो 
चाहे करना हो डांडी मार्च
वो अपने निश्चय पर अडिग थी
अनशन कर कइयों बार
झुका दी अंग्रेजों की वार
करा देश को तब आजाद
उस नन्ही मासूम जान को प्रणाम।

©Deepti Agrawal

मासूम जान ही तो थी जो लड़ रही थी सारे जहां से ना तलवार थी ना ही ढाल सीतमगरो की सह कर मार वो अपनी जिद पर अड़ी थी सत्याग्रह करना हो चाहे करना हो डांडी मार्च वो अपने निश्चय पर अडिग थी अनशन कर कइयों बार झुका दी अंग्रेजों की वार करा देश को तब आजाद उस नन्ही मासूम जान को प्रणाम। ©Deepti Agrawal

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