कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जिद देख , दुवाएं में है झुकता ।।
दीन-हीन को कष्ट , दिलाने आगे बढ़ना ।
चाहे फिर भी आज , स्वयं को सुख में रखना ।।
०५/०४/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्डलिया :-
रखना खुद को है सुखी , हर जन की यह चाह ।
भटक रहा फिर भी मगर , कहीं न पाये राह ।।
कहीं न पाये राह , वेदना यूँ ही बढ़ता
मंदिर मस्जिद देख , दुवाएं में है झुकता ।।
दीन-हीन को कष्ट , दिलाने आगे बढ़ना ।
चाहे फिर भी आज , स्वयं को सुख में रखना ।।