ये वो पल, ये वो क्षण जिसके लिए बरसों इन खिलाड़ियों ने तप किया और हम करोड़ों भारतीयों ने इंतजार इंतजार किया।
इस खेल को यहां सिर्फ खिलाड़ी नहीं खेलते, साथ में दुआएं खेलती हैं, मन्नतें खेलती और असीमित अपेक्षाएं खेलती हैं।
यह भावनाओं का देश है और यही वो भावनाएं हैं जो हार्ड मांस के इस दोपाई जीव को इंसान बनाती हैं और इस विभिन्नताओं से भरे राष्ट्र को एक करतीं हैं।
पलकों पर भर आईं इस नमीं में अब बस यही है कि-:
आंसुओ को बह जाने दो, सांसों को सिसकियों में दब जाने दो।
बरसों की घुटन को बन ज्वालामुखी आज सीने से निकलने दो।
उस खुदा के और इन नीली जर्सी वालों के चरणों में कुछ देर सोने दो।
होते होंगे औरों के लिए ये गेंद और बल्ले का खेल, हमारे लिए हमारा गर्व, हमारी भावनाएं और हमारी जान, इस खेल को रहने दो।।