लज्जा से लाल कपोल सखी, निरख रही दर्पण मुख प्यारे।  | हिंदी कविता

"लज्जा से लाल कपोल सखी, निरख रही दर्पण मुख प्यारे।  नैन बसे छवि मोहन जू की, सारा जग उन्हीं सो न्यारे।  धाय रही सुन वंशी आंचल, वीथिका बीच रहे लपटाय,  मोह रहे सारा जग मोहन, वेष सखी धर देव पधारे। ©Dr Usha Kiran "

लज्जा से लाल कपोल सखी, निरख रही दर्पण मुख प्यारे।  नैन बसे छवि मोहन जू की, सारा जग उन्हीं सो न्यारे।  धाय रही सुन वंशी आंचल, वीथिका बीच रहे लपटाय,  मोह रहे सारा जग मोहन, वेष सखी धर देव पधारे। ©Dr Usha Kiran

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