कश्ती है, पतवार है
पानी है, मझधार है
मछली भी होगी,
मछुआरें भी होंगे
चांद फलक पर रहता हमेशा
तो कुछ टुटते सितारें भी होंगे
लहरें भी होंगी
तुफां भी डरायेगा
हिम्मत ना हारना
तजुर्बा काम आयेगा
तुँ समंदर का सिपाही है
कईयों की नजरें होंगी गिराने पर
कुछ ऐसा ही समाज हो गया है
विश्वास करना खुद का बस
आँखें खोलना की तूँ पार हो गया है
गिराना, तोडना तो आज का कारोबार है
बैठे रहना मुश्किलों की गठरी लिये तो बेकार है
जीत जायेगा जंग विश्वास कर
तेरे पास
कश्ती है, पतवार है
©parveen mati
स्वरचित और मौलिक
कश्ती है, पतवार है
पानी है, मझधार है
मछली भी होगी,
मछुआरें भी होंगे
चांद फलक पर रहता हमेशा
तो कुछ टुटते सितारें भी होंगे