मानिए तो प्रकृति ही ईश्वर है।
देखिए यहां हर सय नश्वर है।।
स्वानत: सुखाय को होता समर है।
भौतिक सुख को सब दर बदर है।।
प्रकृति का नुकसान एक कहर है।
कल कारखाने उगलता जहर है।।
हर तरफ असंतुलन का असर है।
हर कण कण पर उसकी नजर है।।
धरती पर मोह माया इस कदर है।
आंखों से कुछ नहीं आता नजर है।
©Dr Wasim Raja
प्रकृति ही ईश्वर है