आहिस्ता–आहिस्ता ये जिंदगी हमें खींचती ले जा रही है | हिंदी शायरी

"आहिस्ता–आहिस्ता ये जिंदगी हमें खींचती ले जा रही है, न जाने अब किससे हमें मिलाने जा रही है। छोड़ न पाएगी शायद ये कभी हमारा साथ, तभी तो हर क्षण हमें भी मारती जा रही है। उम्र के हर बढ़ते पड़ाव में हम जर्जर होते जा रहे हैं, ये जिंदगी ही तो है, जो हमें इस भवसागर से तारती जा रही है। ये भी तो एक सच्ची संगी ही है, जो ताउम्र साथ रहती है। तभी तो अपनी मौजूदगी में कभी भी, वक्त से पहले मौत को नहीं आने देती है। ©D.R. divya (Deepa)"

 आहिस्ता–आहिस्ता ये जिंदगी हमें खींचती ले जा रही है,
 न जाने अब किससे हमें मिलाने जा रही है।
    छोड़ न पाएगी शायद ये कभी हमारा साथ,
      तभी तो हर क्षण हमें भी मारती जा रही है।
   उम्र के हर बढ़ते पड़ाव में हम जर्जर होते जा रहे हैं,
     ये जिंदगी ही तो है,
   जो हमें इस भवसागर से तारती जा रही है।
    ये भी तो एक सच्ची संगी ही है,
    जो ताउम्र साथ रहती है।
    तभी तो अपनी मौजूदगी में कभी भी,
    वक्त से पहले मौत को नहीं आने देती है।

©D.R. divya (Deepa)

आहिस्ता–आहिस्ता ये जिंदगी हमें खींचती ले जा रही है, न जाने अब किससे हमें मिलाने जा रही है। छोड़ न पाएगी शायद ये कभी हमारा साथ, तभी तो हर क्षण हमें भी मारती जा रही है। उम्र के हर बढ़ते पड़ाव में हम जर्जर होते जा रहे हैं, ये जिंदगी ही तो है, जो हमें इस भवसागर से तारती जा रही है। ये भी तो एक सच्ची संगी ही है, जो ताउम्र साथ रहती है। तभी तो अपनी मौजूदगी में कभी भी, वक्त से पहले मौत को नहीं आने देती है। ©D.R. divya (Deepa)

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