बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे सिर्फ़ ज़िंद | हिंदी शायरी

"बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे सरकार जॉन ऐलिया साहेब"

 बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे 

सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे 

रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं 

सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे 

ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता 

सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे 

कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं 

क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे 

है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम 

बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे 

सरकार  जॉन ऐलिया साहेब

बे-दिली क्या यूँही दिन गुज़र जाएँगे सिर्फ़ ज़िंदा रहे हम तो मर जाएँगे रक़्स है रंग पर रंग हम-रक़्स हैं सब बिछड़ जाएँगे सब बिखर जाएँगे ये ख़राबातियान-ए-ख़िरद-बाख़्ता सुब्ह होते ही सब काम पर जाएँगे कितनी दिलकश हो तुम कितना दिल-जू हूँ मैं क्या सितम है कि हम लोग मर जाएँगे है ग़नीमत कि असरार-ए-हस्ती से हम बे-ख़बर आए हैं बे-ख़बर जाएँगे सरकार जॉन ऐलिया साहेब

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