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दर्द दिल का फिर से बढ़ा जाये
कोई दिल की लगी बुझा जाये
पी गये मयकदा निगाहों से
अश्क अब अपना ना पिया जाये
कह रहा दास्ताँ सुलगताब तम
कब तलक तन्हा यूँ जिया जाये
भूल कर हम सबक मुहब्बत का
कोई आ कर हमें सिखा जाये
बन गये बज्म में लतीफे हम
उनके महफ़िल से अब चला जाये
राह में और कुछ नहीं दिखता
सजदे में उनके अब गिरा जाये
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
21/3/2017
©laxman dawani
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