अफसोस नकार दिया जब अपनो ने ही ऐ'खुदा, तो परायों

"अफसोस नकार दिया जब अपनो ने ही ऐ'खुदा, तो परायों से क्या उम्मीद रखूँ मैं। अफसोस! छोड़ जाती है परछाई भी साथ मेरा, ढलता है जब सूरज रोज़ इस जहाँ में। "

 अफसोस 

नकार दिया जब अपनो ने ही ऐ'खुदा, 
तो परायों से क्या उम्मीद रखूँ मैं। 
अफसोस! छोड़ जाती है परछाई भी साथ मेरा, 
ढलता है जब सूरज रोज़ इस जहाँ में।

अफसोस नकार दिया जब अपनो ने ही ऐ'खुदा, तो परायों से क्या उम्मीद रखूँ मैं। अफसोस! छोड़ जाती है परछाई भी साथ मेरा, ढलता है जब सूरज रोज़ इस जहाँ में।

अफसोस

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