क्यू आज घबरा रही हू मै ,थोड़ा तो लड़खड़ा रही हू मै
इतनी कमजोर तो नही हू मैं,हर पल यही खुद को
समझा रही हू मै
हां मंजिल पहुंचने की राह थोड़ी धुंधली दिख रही है पर
मंजिल पाना तो निष्चित है यही हर पल, खुद में
गुनगुना रही हू मै
पहुंच चुकी होती मैं तो अपनी मंजिल पर, यदि राह की मुश्किलों ने मुझे घेरा नही होता
और फिर मैने खुद पर से हौसला खोया ना होता,
पर अब फिर खोल में बंद कीड़े के समान, तितली बन
उड़ने को बेताब हु मै
हां रास्ते की परिस्थितियां देख कर थोड़ा तो
घबरा रही हू मै,
पर फिर एक बार मंजिल की ओर दुगुनी हिम्मत रख
चलने को तैयार ही मैं
©Priya's poetry life
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