बहुत ही बेहतरीन कहानी....
कफ़न..
नीचे कैपशन में पढ़िये...
©हरिओम सुल्तानपुरी
#कहानी- कफ़न
झोपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीबी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अन्धकार में लय हो गया था।
घीसू ने कहा, "मालूम होता है, बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते हो गया, जा देख तो आ।"
माधव चिढक़र बोला, "मरना ही तो है जल्दी मर क्यों नहीं जाती? देखकर क्या करूँ?"
"तू बड़ा बेदर्द है बे! सालभर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई!"
"तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता।"
चमारों का कुनबा था और सारे गाँव में बदनाम। घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता। माधव इतना कामचोर था कि आध घण्टे काम करता तो घण्टे भर चिलम पीता। इसलिए उन्हें कहीं मजदूरी नहीं मिलती थी। घर में मुठ्ठीभर भी अनाज मौजूद हो, तो उनके लिए काम करने की कसम थी। जब दो-चार फाके हो जाते तो घीसू पेड़ पर चढक़र लकडिय़ाँ तोड़ लाता और माधव बाजार से बेच लाता और जब तक वह पैसे रहते, दोनों इधर-उधर मारे-मारे फिरते।