ग़ज़ल :- उसे कैसे यहाँ अपनी बता दुल्हन बना लेता । लि | हिंदी शायरी

"ग़ज़ल :- उसे कैसे यहाँ अपनी बता दुल्हन बना लेता । लिखा तकदीर में था ये कि मैं आँसू बहा लेता ।।१ वफ़ा उनसे किया जबसे तभी मुश्किल हुई यारो । सजा तो मिल रही है अब खता मैं क्या छुपा लेता ।।३ तुम्हारे आज जाने से यही अच्छा मुझे लगता । तुम्हारे बाद ही अपना गला मैं भी दबा लेता ।।३ ज़फा करके करोगे तुम सामना इस तरह मेरा । पता होता तो मैं पहले निगाहें ये घुमा लेता ।।४ बुलाकर आप महफ़िल में रखोगे इस तरह प्यासा । कसम से जहर ही मैं फिर लवों से इन लगा लेता ।।५ अदब से पेश आते तो उन्हें कहना नही पड़ता । प्रखर ये सिर चरण उनके स्वयं से फिर झुका लेता ।।६ प्रखर से तोड़कर रिश्ता सजा तुम डोलियां लोगे । यकीं होता तो मैं अपनी वहीं अर्थी सजा लेता ।।७ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 ग़ज़ल :-
उसे कैसे यहाँ अपनी बता दुल्हन बना लेता ।
लिखा तकदीर में था ये कि मैं आँसू बहा लेता ।।१

वफ़ा उनसे किया जबसे तभी मुश्किल हुई यारो ।
सजा तो मिल रही है अब खता मैं क्या छुपा लेता ।।३

तुम्हारे आज जाने से यही अच्छा मुझे लगता ।
तुम्हारे बाद ही अपना गला मैं भी दबा लेता ।।३

ज़फा करके करोगे तुम सामना इस तरह मेरा ।
पता होता तो मैं पहले निगाहें ये घुमा लेता ।।४

बुलाकर आप महफ़िल में रखोगे इस तरह प्यासा ।
कसम से जहर ही मैं फिर लवों से इन लगा लेता ।।५

अदब से पेश आते तो उन्हें कहना नही पड़ता ।
प्रखर ये सिर चरण उनके स्वयं से फिर झुका लेता ।।६

प्रखर से तोड़कर रिश्ता सजा तुम डोलियां लोगे ।
यकीं होता तो मैं अपनी वहीं अर्थी सजा लेता ।।७
महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :- उसे कैसे यहाँ अपनी बता दुल्हन बना लेता । लिखा तकदीर में था ये कि मैं आँसू बहा लेता ।।१ वफ़ा उनसे किया जबसे तभी मुश्किल हुई यारो । सजा तो मिल रही है अब खता मैं क्या छुपा लेता ।।३ तुम्हारे आज जाने से यही अच्छा मुझे लगता । तुम्हारे बाद ही अपना गला मैं भी दबा लेता ।।३ ज़फा करके करोगे तुम सामना इस तरह मेरा । पता होता तो मैं पहले निगाहें ये घुमा लेता ।।४ बुलाकर आप महफ़िल में रखोगे इस तरह प्यासा । कसम से जहर ही मैं फिर लवों से इन लगा लेता ।।५ अदब से पेश आते तो उन्हें कहना नही पड़ता । प्रखर ये सिर चरण उनके स्वयं से फिर झुका लेता ।।६ प्रखर से तोड़कर रिश्ता सजा तुम डोलियां लोगे । यकीं होता तो मैं अपनी वहीं अर्थी सजा लेता ।।७ महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

ग़ज़ल :-
उसे कैसे यहाँ अपनी बता दुल्हन बना लेता ।
लिखा तकदीर में था ये कि मैं आँसू बहा लेता ।।१

वफ़ा उनसे किया जबसे तभी मुश्किल हुई यारो ।
सजा तो मिल रही है अब खता मैं क्या छुपा लेता ।।३

तुम्हारे आज जाने से यही अच्छा मुझे लगता ।

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