आसमाँ अनंत है,
ज़मी का कहीं अंत है...
मन भटकता है चहूँ ओर
इसका ना कहीं अंत है।
कौन किसका है इस जहां में
रे मन बता रे
कहाँ तू संतुष्ट है...
आँधी उठी तो कभी तूफ़ाँ
कभी दर्द उठा तो
कभी कसक जगी
कौन सुनता है सुनाए कौन
किसके दिल में लगी,
किसे है दिल्लगी
रे मन बता रे
कहाँ तू संतुष्ट है!
आसमाँ अनंत है,
ज़मी का कहाँ अंत है.....
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