Village Life बार बार रोकने के बावजूद जब सीता स्वयं चलने लगी तो लक्ष्मण के मन में यह विचार क्यों नहीं आया कि दोनों साथ ही चले जाएं ताकि पीछे सीता की चिंता ही न रहे ।
या नहीं...सब कुछ इतनी सहजता से घटित होता चला गया कि... यहाँ यह समझ में आता है कि-" होनी कितनी प्रबल और अटल होती है?" होने से पहले हमारी बुद्धि को ही हर लेती है या यह कहना भी सही नहीं है क्योंकि हमें तो जो हो रहा है या हम जो करना चाह रहे हैं उस समय की परिस्थिति के अनुसार सही ही लगता है लेकिन वही घटनाक्रम स्वतः होनी को सामने ले आते हैं जो हमें असह्य,असम्भावित व अघटित लगती है।
सच है, जो होना होता है वह होकर ही रहता है।उसके आगे हम सब निरुपाय व किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं!!
जय श्री राम!!!
©Anjali Jain
#villagelife 24.03.24
भाग 02