तेरी प्रीत की जहर कुछ इस तरह से तड़पता है।
आवाज को दबाकर एक दर्द भरी चिक निकल जाता है।
राधा तो आज भी पागल जोगन कहलाती है।
नींद में, होश में, आगोश में, सिर्फ उसे झूठे का नाम पुकारती है।
दिन, महीने, साल, युग, सब समय के साथ गुजर रही है। मगर उसकी प्रीत की लाली, गहरी की गहरी होती जा रही है।
एक औरत के प्यार की गहराई को देख सागर भी शर्मा जाता है।
चाहे वह राधा हो, सीता हो, या सती हो, प्रेम आज भी सिर्फ एक से ही होता है।।
©Anamika
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