बहुत है आशिकों को देख कर हमारे दिल में भी सोज़, मह | हिंदी शायरी

"बहुत है आशिकों को देख कर हमारे दिल में भी सोज़, महबूब साथ हो तो हमारा चहरा भी रहता है अफ़रोज़, सीधे रास्ते में भी चलते-चलते कदम बहक जाते है कई रोज़, जब याद आता है माथे का बोसा लिया था उसने एक रोज़। - काज़ी मुईज़ हाशमी"

 बहुत है आशिकों को देख कर हमारे दिल में भी सोज़,
महबूब साथ हो तो हमारा चहरा भी रहता है अफ़रोज़,

सीधे रास्ते में भी चलते-चलते कदम बहक जाते है कई रोज़,
जब याद आता है माथे का बोसा लिया था उसने एक रोज़।

- काज़ी मुईज़ हाशमी

बहुत है आशिकों को देख कर हमारे दिल में भी सोज़, महबूब साथ हो तो हमारा चहरा भी रहता है अफ़रोज़, सीधे रास्ते में भी चलते-चलते कदम बहक जाते है कई रोज़, जब याद आता है माथे का बोसा लिया था उसने एक रोज़। - काज़ी मुईज़ हाशमी

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बहुत है आशिकों को देख कर हमारे दिल में भी सोज़,
महबूब साथ हो तो हमारा चहरा भी रहता है अफ़रोज़,

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