# प्यार एक छलावा#
जब अकेलेपन में तुझे याद करता हूं ,
छुपकर जमाने से तेरा दीदार करता हूं,
यूं तो तस्वीर तेरी आंखों में बसी है ,
मगर तुझे सामने देखने की चाह करता हूं ,
कब तक मेरी जान मुझे तड़पाओगे ,
और कितना जानेमन मुझे सताओगे ,
किसी रोज मैं जो रूठ गया ,तब क्या करोगे ,
मेरे हाथों से ये हाथ छूट गया , तब क्या करोगे ,
जानता हूं ये ख्वाब में भी आए तो , टूट जाओगे ,
उस टूटे आशियाने में फिर आखिर , किसे बसाओगे ?
किसी की चाहत का यूं बार - बार आज माना ठीक नहीं ,
अपने अहम को मारकर तुम्हे और कितना चाहेंगे ,
जिस दिन आत्मसम्मान जीत गया ,उस रोज तुम्हे आजमाएंगे ,
सच कहता हूं तुम हार जाओगे।
©Umesh kumar
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