टूटी हुई बोतल की तरह
बे-कार बे-मक़्सद
ज़िंदगी के ताक़ में
रक्खा हुआ हूँ मैं
वो कौन था जो छोड़ गया
मेरे वजूद के शीशे पर
अपनी लहू रंग यादों के
निशाँ
उस से पहले कि बारिश
उन निशानात को धो डाले
मैं रेज़ा रेज़ा हो जाऊँ
फ़र्श पर बिखर जाऊँ
वक़्त के पैरों में चुभ जाऊँ
फ़र्श ज़मीं को रंगीं कर दूँ
और ख़ुद भी रंगीं हो जाऊँ
:-प्रशांत
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