जितनी आला मिट्टी होगी उतना उम्दा बनेगा बर्तन...!
किसी कांसे को फ़िर कूज़ागर से शिकायत कैसी...!!
कांच के मुक़ददर में लिखी ही नहीं जब उम्र-ए-दराज़...!
किसी आईने को फ़िर शीशागर से शिकायत कैसी...!!
एक ही मत्ला है मगर गुल भी है और खार भी...!
अहले महफ़िल को फ़िर लफ़्ज़गर से शिकायत कैसी...!!
वक़्त का जब वार पड़ेगा सब का सब खंडर हो जायेगा...!
दीवार-ओ-दर को फ़िर कारिगर से शिकायत कैसी...!!
©Abd
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