अर्ज़ है.... पत्थर भी उसी ने बनाया मुझे जिसके लिए मैं मोम बनी थी
सूरज सा चमका था वो मुझमे और मैं उसमे, शाम सी ढली थी
तोड़ दिया उसने दिल का साज़ जिसके हर तार से, मैं बँधी थी
कर दिया जुदा उसने मुझे, ख़ुद से जिसके हर एहसास से,मैं जुड़ी थी
कर लिया जल्द ही किनारा मुझसे और मैं बीच मझधार में ही फंसी थी..!!
©Kanchan Agrahari
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