जीवन के मध्य में आ कर जब महसूस होता है की.. "अब आधा सफ़र हो चुका है.. और बाक़ी आधा.. हर दिन कम होती शक्ति के साथ गुज़ारना पड़ेगा" तो एक अजीब सी मजबूरी का एहसास होता है।
तब लगता है की.. समय रेत की तरह हाथ से छूठ रहा है.. अब सबकुछ पहले जैसा नहीं रहेगा अब धीरे-धीरे अपनी इच्छाओं को.. समेटना ही ठीक रहेगा।
इस अहसास के बाद फिर किसी से कुछ और कहा नहीं जाता.. बस हर दिन भारी मन व एक कृत्रिम मुस्कान के साथ जीवन के इस सच के साथ आगे बढ़ना पड़ता है।
©soul mate khushi
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