बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता अगर जिंदगी से मुझे न

"बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता अगर जिंदगी से मुझे ना तजुरबा होता तड़प कर मर जाती मेरी सारी खुशियां मेरे दिल में पल रहे गम का अगर उन्हें पता होता तह तक पहुचनें का फिर क्या फ़ायदा अगर शुरुवात में ही लिखा बुरा होता क़ैद में कमबख्त उम्र भर तन्हा रहती अगर खामोशियों को लफ्जो का सहारा ना होता सोचता हूं की कुछ तस्वीरें ही रख लूं ख़ुद की हर वक़्त असलियत को आइने में ना देखना होता बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता अगर जिंदगी से मुझे ना तजुरबा होता ©Kumar Aman "

 बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता 
अगर जिंदगी से मुझे ना तजुरबा होता 

तड़प कर मर जाती मेरी सारी खुशियां 
मेरे दिल में पल रहे गम का अगर उन्हें पता होता 

तह तक पहुचनें का फिर क्या फ़ायदा 
अगर शुरुवात में ही लिखा बुरा होता 

क़ैद में कमबख्त उम्र भर तन्हा रहती 
अगर खामोशियों को लफ्जो का सहारा ना होता 

सोचता हूं की कुछ तस्वीरें ही रख लूं ख़ुद की 
हर वक़्त असलियत को आइने में ना देखना होता 

बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता 
अगर जिंदगी से मुझे ना तजुरबा होता

©Kumar Aman

बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता अगर जिंदगी से मुझे ना तजुरबा होता तड़प कर मर जाती मेरी सारी खुशियां मेरे दिल में पल रहे गम का अगर उन्हें पता होता तह तक पहुचनें का फिर क्या फ़ायदा अगर शुरुवात में ही लिखा बुरा होता क़ैद में कमबख्त उम्र भर तन्हा रहती अगर खामोशियों को लफ्जो का सहारा ना होता सोचता हूं की कुछ तस्वीरें ही रख लूं ख़ुद की हर वक़्त असलियत को आइने में ना देखना होता बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता अगर जिंदगी से मुझे ना तजुरबा होता ©Kumar Aman

बहुत दिनों बाद फिर कुछ पोस्ट कर रहा हूं शायद आपको ये ग़ज़ल पसंद आए अगर आए तो जरूर बताइएगा ......
बेवजह यूहीं मै ना जिंदा होता
अगर जिंदगी से मुझे ना तजुरबा होता

तड़प कर मर जाती मेरी सारी खुशियां
मेरे दिल में पल रहे गम का अगर उन्हें पता होता

तह तक पहुचनें का फिर क्या फ़ायदा

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