मुझे तुमसे बहुत कुछ कहना है।
उस दिन जब तुम यह कहकर चले गए थे कि अब हम कभी एक नहीं हो सकते,
क्या तुमने एक बार भी पीछे मुड़कर देखा था?
नहीं, तुमने नहीं देखा।
तुम्हें देखना चाहिए था कि कैसे मैं यह सुनकर होशोहवास खो बैठी थी,
कैसे मैं बदहवास होकर ज़मीन पर गिर पड़ी थी।
तुम्हें देखना चाहिए था कि कैसे एक पल में तुमने इतना बड़ा फैसला सुना दिया था,
जिसके लिए मैं सपने में भी तैयार नहीं थी।
खैर, छोड़ो, तुमने देखा ही नहीं।
तुमने पीछे मुड़कर नहीं देखा,
पर तुम्हें एक कॉल तो ज़रूर करना चाहिए था
और सुनना चाहिए था वो चीखें, वो आहें,
जिनके शोर से मेरा दिमाग सुन्न पड़ गया था,
साँसें कुछ देर के लिए थम सी गई थीं।
बस ऐसा लग रहा था मानो प्राण पखेरू हो चुके हैं।
तुम्हें सुनना चाहिए था हर वो बात जो मैंने उस दिन शराब के नशे में आईने से कही थी।
तुम्हें सुनना चाहिए था।
क्या तुम्हें याद है, मैंने कितनी मिन्नतें की थीं तुमसे,
कि एक बार मिल लो, पर तुम नहीं आए।
तुम्हें आना चाहिए था,
मेरे हाथों पर लगे वो सारे ज़ख्म देखने,
मेरे आँसुओं से भीगी वो सुरख लाल आँखें देखने।
तुम्हें आना चाहिए था
वो मेरे हाथों की कपकपाहट देखने,
वो तुम्हारा नाम लेकर पागलों की तरह चीख-चीख कर अपने बालों को नोचता हुआ देखना।
तुम्हें आना चाहिए था
वो पागलों की तरह रात भर हाथ में चाकू लिए खुदकुशी करने को मुझे बेबस देखना।
तुम्हें आना चाहिए था।
अगर उस दिन तुमने पलट कर मुझे देख लिया होता,
अगर उस दिन तुमने एक कॉल कर लिया होता,
या मेरे बुलाने पर मुझसे एक बार मिल लिए होते,
तो शायद तुम जाने का फैसला बदल लेते,
हम बैठ कर सारे मसले हल कर लेते,
और जीत जाती फिर से मोहब्बत हमारी,
और फिर ना होती ये मोहब्बत अधूरी हमारी।
©Shayar shree (शायर "श्री")
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