"अब उन हसीन अदाओं का रंग छूट गया,
हमारे प्यार का सपना ही जैसे टूट गया।
ये हमने माना कि हरदम चलेगा दौर यही,
मिलेगा वह कहाँ प्याला जो गिरके टूट गया।
कभी तो फिर भी अकेले में मिल ही जाओगे,
भले ही आज है मेले में साथ छूट गया।
वे और हैं जो बजाते हैं ज़िन्दगी का सितार,
छुआ था हमने तो जैसे ही, तार टूट गया।
गुलाब! तुमने भी फेंकी तो थी हवा में कमंद,
पहुँच न पाए थे उन तक कि हाथ छूट गया।
©Rahul Bhardwaj
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