जब जिस्म को ज़ख्मों का एहसास न रहे बात उस वक़्त उम्म | हिंदी Poetry

"जब जिस्म को ज़ख्मों का एहसास न रहे बात उस वक़्त उम्मीद की कोई कैसे करे"

 जब जिस्म को ज़ख्मों का एहसास न रहे
बात उस वक़्त उम्मीद की कोई कैसे करे

जब जिस्म को ज़ख्मों का एहसास न रहे बात उस वक़्त उम्मीद की कोई कैसे करे

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