दुनिया बड़ी विचित्र है" कही धनवृष्टि की है बहार

""दुनिया बड़ी विचित्र है" कही धनवृष्टि की है बहार कही दो रोटी का इंतजार कोई है धनी फिर भी व्याकुल निर्धन है कोई खुश अपार कोई वस्त्रो से है मलिन कोई मन से अपवित्र है ये दुनिया बड़ी विचित्र है -शिवमंगल पण्ड्या"

 "दुनिया बड़ी विचित्र है"

कही धनवृष्टि की है बहार 
कही दो रोटी का इंतजार 
कोई है धनी फिर भी व्याकुल 
निर्धन है कोई खुश अपार 

कोई वस्त्रो से है मलिन 
कोई मन से अपवित्र है 
ये दुनिया बड़ी विचित्र है 

         -शिवमंगल पण्ड्या

"दुनिया बड़ी विचित्र है" कही धनवृष्टि की है बहार कही दो रोटी का इंतजार कोई है धनी फिर भी व्याकुल निर्धन है कोई खुश अपार कोई वस्त्रो से है मलिन कोई मन से अपवित्र है ये दुनिया बड़ी विचित्र है -शिवमंगल पण्ड्या

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