मनहरण घनाक्षरी :- जल बिना जल जात , जल अब कहाँ मात | हिंदी कविता

"मनहरण घनाक्षरी :- जल बिना जल जात , जल अब कहाँ मातु , जल से ही जीवन है, जल को बचाइये ।। जल से ही कल रहे , सुनो सभी हल रहे, ले चल किसान हल , खेत में चलाइये ।। बीज जब खेत पड़े , धीरे-धीरे हुए बड़े, खुशी से किसान कहे, पौध को लगाइये ।। देख आई बरसात , हट गई काली रात । कह दो सरपंच से , पोखर खुदाइये ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR"

 मनहरण घनाक्षरी :-

जल बिना जल जात , जल अब कहाँ मातु ,
जल से ही जीवन है, जल को बचाइये ।।

जल से ही कल रहे , सुनो सभी हल रहे,
ले चल किसान हल , खेत में चलाइये ।।

बीज जब खेत पड़े , धीरे-धीरे हुए बड़े,
खुशी से किसान कहे, पौध को लगाइये ।।

देख आई बरसात , हट गई काली रात ।
कह दो सरपंच से , पोखर खुदाइये ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी :- जल बिना जल जात , जल अब कहाँ मातु , जल से ही जीवन है, जल को बचाइये ।। जल से ही कल रहे , सुनो सभी हल रहे, ले चल किसान हल , खेत में चलाइये ।। बीज जब खेत पड़े , धीरे-धीरे हुए बड़े, खुशी से किसान कहे, पौध को लगाइये ।। देख आई बरसात , हट गई काली रात । कह दो सरपंच से , पोखर खुदाइये ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR

मनहरण घनाक्षरी :-

जल बिना जल जात , जल अब कहाँ मातु ,
जल से ही जीवन है, जल को बचाइये ।।

जल से ही कल रहे , सुनो सभी हल रहे,
ले चल किसान हल , खेत में चलाइये ।।

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