मनहरण घनाक्षरी :-
जल बिना जल जात , जल अब कहाँ मातु ,
जल से ही जीवन है, जल को बचाइये ।।
जल से ही कल रहे , सुनो सभी हल रहे,
ले चल किसान हल , खेत में चलाइये ।।
बीज जब खेत पड़े , धीरे-धीरे हुए बड़े,
खुशी से किसान कहे, पौध को लगाइये ।।
देख आई बरसात , हट गई काली रात ।
कह दो सरपंच से , पोखर खुदाइये ।।
महेन्द्र सिंह प्रखर
©MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी :-
जल बिना जल जात , जल अब कहाँ मातु ,
जल से ही जीवन है, जल को बचाइये ।।
जल से ही कल रहे , सुनो सभी हल रहे,
ले चल किसान हल , खेत में चलाइये ।।